मेरी रचनात्मक अभिव्यक्ति
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07/05/24
राधारमणिका (1)
" रे , घट पर विकल
कलरव रोर रव घण सघण घण।

आपत् आपद् आप्त् व्याप्त
व्युत्पन्न व्यु-व्याध रे।

वृष्टि-वृष्ट-निवृष्ट
नृ-नृप-निगाध रे,
गुण-अवगुण धृति पर के "।

©
( के० आर० 'च्यु' )•√

राधारमणिका (2)
" दृष्टि-वृष्टि वृष्ट अंत:वृष्ट
पृक्त संपृक्त संपात सम
सुरम्य रम्य रति रत "।

©

( के० आर० 'च्यु' )•√

राधारमणिका (3)
" नृ रृ नृप निदाघ

हृ रृ हृप हिप्र-क्षिप्र वीचि
वी वि वृ-विषाद "।



( के० आर० 'च्यु' )•√

राधारमणिका (4)
" सख्य-साख्य सखि
विशिख-वैशाख्य , वृ-वृहि
गृहित_ अनुगृही, ग्राही ।"






©
( के० आर० 'च्यु' )•√

The Sage Of The Saga The Sage Of The Saga According to edge
A holance Of edge
I'm kid , Present & Past Also.